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कविता

एक अँजुरी प्रकाश चाहिए मुझे

पंकज चतुर्वेदी


दरवाज़ों पर लंबी इतिहास-संस्कृति की
गहरी वार्निश चढ़ी हुई है
अब उन पर 'खुल जा सिमसिम' का
जादू नहीं चलता

मैं दरवाज़ों पर
अपने अशक्त हाथ
बार-बार दे मारता हूँ
पर वे नहीं खुलते
वे जानते हैं कि ये मुट्ठियाँ
ख़ाली और अँधेरी और सर्द हैं

एक अँजुरी प्रकाश चाहिए मुझे
कि जिसकी महक से उन्मत्त होकर
जिसकी ऊष्मा से पिघलकर
जिसके उन्मद संगीत से आहत होकर
चरमराकर टूट जाएँगे दरवाज़े
और रास्ते पर रास्ता
खुलता चला जाएगा

क्योंकि सचमुच
दरवाज़ों के बंद होने के पहले
मैंने एक मद्धिम रोशनी को
उनके अंदर जाते देखा था


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